वर्तमान काल के सर सय्यद मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी का निधन:

 मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी का निधन: 




मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी का जीवन और कार्य पर  विस्तृत जानकारी यहाँ दी गई है:

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

 * उनका जन्म 1 जून, 1950 को कोसाडी, गुजरात में हुआ था, उनका परिवार बाद में वस्तान चला गया, जिससे उन्हें अपना उपनाम मिला।

 * उन्होंने कोसाडी के मदरसा कुव्वत-उल-इस्लाम में अपनी शिक्षा शुरू की, जहाँ उन्होंने कुरान कंठस्थ किया।

 * उन्होंने आठ वर्षों तक बड़ौदा के मदरसा शम्स-उल-उलूम और फिर तुर्केसर, गुजरात के मदरसा फलाह-ए-दारेन में अपनी इस्लामी शिक्षा जारी रखी, 1972 में प्रमुख विद्वानों के तहत अपनी पढ़ाई पूरी की।

 * 1972 के अंत में, उन्होंने सहारनपुर, उत्तर प्रदेश के मज़ाहिर उलूम में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने प्रतिष्ठित विद्वानों जैसे मुहम्मद यूनुस जौनपुरी के तहत उन्नत इस्लामी विज्ञान, विशेष रूप से हदीस का अध्ययन किया, और 1973 में वहाँ अपनी शिक्षा पूरी की।

देवबंद में संक्षिप्त कार्यकाल के बावजूद, मौलाना वस्तानवी भारतीय मुस्लिम समुदाय में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बने हुए हैं। वह महाराष्ट्र के अक्कलकुवा में जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम के संस्थापक और रेक्टर हैं, एक ऐसा संस्थान जो पारंपरिक इस्लामी शिक्षा और आधुनिक व्यावसायिक पाठ्यक्रम दोनों प्रदान करता है, जिसमें भारत का पहला अल्पसंख्यक-स्वामित्व वाला मेडिकल कॉलेज भी शामिल है जिसे भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) द्वारा मान्यता प्राप्त है।

 * 1972 के अंत में, उन्होंने सहारनपुर, उत्तर प्रदेश के मज़ाहिर उलूम में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने प्रतिष्ठित विद्वानों जैसे मुहम्मद यूनुस जौनपुरी के तहत उन्नत इस्लामी विज्ञान, विशेष रूप से हदीस का अध्ययन किया, और 1973 में वहाँ अपनी शिक्षा पूरी की।

 * दिलचस्प बात यह है कि अपनी पारंपरिक इस्लामी शिक्षा के साथ-साथ, मौलाना वस्तानवी के पास एमबीए की डिग्री भी है, जो एक अनूठा संयोजन है जो धार्मिक शिक्षा के साथ आधुनिक ज्ञान को एकीकृत करने की उनकी दूरदृष्टि को दर्शाता है।

 * उनका प्रमुख सूफी हस्तियों के साथ गहरा आध्यात्मिक संबंध भी था, उन्होंने ज़करिया कंधलवी और बाद में सिद्दीक अहमद बंदवी और यूनुस जौनपुरी से सूफीवाद में प्राधिकरण प्राप्त किया।

जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम की स्थापना:

 * 1979 में, मौलाना वस्तानवी ने अक्कलकुवा, महाराष्ट्र में जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम की स्थापना की। केवल छह छात्रों के साथ एक छोटे से मदरसे के रूप में शुरू होकर, यह एक महत्वपूर्ण शैक्षिक परिसर के रूप में विकसित हुआ है।

 * यह संस्थान पारंपरिक इस्लामी शिक्षा के साथ आधुनिक शैक्षणिक विषयों के मिश्रण की उनकी दूरदृष्टि का प्रमाण है। यह प्राथमिक से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और फार्मेसी सहित पाठ्यक्रमों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है।

 * जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम की एक उल्लेखनीय उपलब्धि भारत का पहला अल्पसंख्यक-स्वामित्व वाला मेडिकल कॉलेज स्थापित करना है, जिसे भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI), जलना में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च द्वारा मान्यता प्राप्त है।

 * उनके नेतृत्व में, जामिया को महाराष्ट्र और उससे बाहर कई स्कूलों (मक्तब) और मस्जिदों की स्थापना का भी श्रेय दिया जाता है, जिसने शिक्षा और सामुदायिक बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

दारुल उलूम देवबंद में विवाद:

 * मौलाना वस्तानवी को 10 जनवरी, 2011 को दारुल उलूम देवबंद का कुलपति नियुक्त किया गया था, जो मदरसे के 200 साल के इतिहास में इस पद को संभालने वाले पहले गुजराती थे।

 * उनकी नियुक्ति को कई लोगों ने रूढ़िवादी संस्थान के भीतर आधुनिकीकरण के लिए एक संभावित उत्प्रेरक के रूप में देखा, क्योंकि उनके पास इस्लामी अध्ययन और आधुनिक शिक्षा दोनों की पृष्ठभूमि थी।

 * हालाँकि, उनका कार्यकाल अल्पकालिक और महत्वपूर्ण विवादों से भरा रहा। पदभार संभालने के तुरंत बाद, उन्होंने कथित तौर पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की विकास पहलों की प्रशंसा करते हुए टिप्पणी की और सुझाव दिया कि मुसलमानों को 2002 के सांप्रदायिक दंगों से आगे बढ़ना चाहिए।

 * इन बयानों ने दारुल उलूम के भीतर रूढ़िवादी तत्वों से कड़ी आपत्ति जताई, जिन्होंने उन्हें मोदी का मौन समर्थन और मुस्लिम समुदाय की शिकायतों की अवहेलना के रूप में देखा।

 * उनकी इस सफाई के बावजूद कि वह दंगों के संबंध में मोदी को क्लीन चिट नहीं दे रहे थे, विवाद बढ़ गया, छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन हुए और उनके इस्तीफे की मांग की गई।

 * मामले की जांच के लिए एक जांच समिति का गठन किया गया था, और अंततः, 24 जुलाई, 2011 को मदरसा की शासी परिषद के मतदान के बाद मौलाना वस्तानवी को उनके पद से हटा दिया गया।

 * उनके निष्कासन को कुछ लोगों ने दारुल उलूम के भीतर सुधार के प्रयासों के लिए एक झटका और अधिक रूढ़िवादी गुट की जीत के रूप में देखा। समर्थकों ने तर्क दिया कि उन्हें उनके प्रगतिशील विचारों और मुस्लिम युवाओं को आधुनिक शिक्षा अपनाने और मुख्यधारा का हिस्सा बनने की उनकी इच्छा के लिए निशाना बनाया जा रहा था।

देवबंद के बाद और निरंतर योगदान:

 * विवाद के बावजूद, मौलाना वस्तानवी ने जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम के माध्यम से शिक्षा और सामुदायिक विकास के क्षेत्र में अपना काम जारी रखा है।

 * यह संस्थान धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष ज्ञान के संयोजन वाली शिक्षा का एक अनूठा मॉडल पेश करते हुए लगातार विस्तार कर रहा है।

 * वह विभिन्न सामाजिक और सामुदायिक पहलों में भी शामिल रहे हैं।


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इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैही राजीऊन....


मेरे उस्ताद हम जिस बि एड कालेज से तालीम लिऐ जामिया इस्लामिया इशातुल उल्लूम के बानी संस्था चालक सरपरस्त 


हजरत मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी साहेब. का इंतेकाल हुआ हज़रत जी कुछ दिनों से बिमार थे पुरे भारत देश मे हजारों लाखों मस्जिद मकातीब और अक्कलकुवा जि नंदुरबार मे बडा एजुकेशनल कैंप लाखो करोड़ो तलबा हाफिज आलीम मुफती नाझिम डाक्टर इंजीनियर टिचर आज हज़रत कि तालीम पर अमल कर रहें है मौलाना साहब ने सारे दुनिया के इंनसानो सभी मजहब सभी धर्मों से मौहब्बत करने और खासकर अपने प्यारे भारत देश पर जान कुरबान करने का हमे सबक दिया सभी देशवासियों से हम दर्दी से पेश आनेका सबक दिया सादगी से जिंदगी बसर करना हमारे नबी मोहम्द मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहुसल्लम सुन्नत पर अमल करते रहेना गरीबों कि बेवाओ कि जरूरत मंदो कि मदत करने का हमे पाठ पढाया सादा जीवन बसर करने को कहा हमेशा मौलाना साहब को हमारे देश में अमन शांति कि फिक्र रहेती रातो को दुआओं में रोते खुब मांगते हिदुस्तान कि बहोत बड़ी दिनी शक्सियत बुजुर्ग आज हम मे नहि रहे


अल्लाह मगफिरत फरमाये.

जन्नत में आला मकाम अताफरमाऐ आमिन सुम्मा आमिन



मजहर पटेल अलमलेकर 

एम ए एम एड बि ए एल एल बी

 जामिया इस्लामिया इशातुल उल्लूम अक्कलकुवा

प्राचार्य जुलेखा उर्दू डी एड कालेज औसा

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