*उन्हें हिजाब पहनने से न रोको, आप के परिवार की महिलाएं भी उनका समर्थन करती है*
*शाहेद जी शेख*
एक तरफ Valentine Day, फिल्मो के अश्लीलता का कथित रूप से विरोध करने का नाटक करने वाले सियासी दलों के 'परिवार' ने दुसरी ओर देश में हिजाब को लेकर विरोध शुरू किया है. जिन महिलाओं का दुख सहन न होने के कारण तीन तलाक़ रद्द करके उन महिलाओं को न्याय दिलाकर उनका दुख दूर करने का झांसा दिया गया अब कुछ हिटलरवादी ढोंगी उसी समाज महिलाओं-बच्चियों को शिक्षा से दूर करने का एक और "अच्छा काम" कर रहे. कानून क्या कहता है, संविधान क्या कहता है इससे इनका कोई लेना देना नहीं है. आइये इनकी नौटंकी का थोड़ा विश्लेषण करते है.
*UP CM के भगवे वस्त्र*
एक धर्म विशेष से सम्बन्धित होने के कारण ही अलग अलग बहाने बनाकर कर्नाटक, UP सहित देश के कही राज्यों में महिलाओं को हिजाब पहनने से रोका जा रहा है.
उधर यू पी के CM भगवा Gown डालकर ही 24 घंटे देखे जाते है, साध्वी प्रज्ञा, साक्षी महाराज और कही लोग है जो उनकी मर्जी के अनुसार कपड़े परिधान करते है. आज तक हिजाब पहनने वालों के समाज ने उनपर कोई आपत्ति नही उठाई. आदरणीय पूर्व PM मनमोहन सिंह भी पगड़ी लगाकर रहे है और हम उन्हें ऐसा ही देखना चाहते है. उनपर कोई objection का सवाल ही पैदा नही होता. न ही लुंगी लगाकर PM की पोस्ट पर बैठे एच डी देवेगौड़ा और इसी तरह रहने वाले उपराष्ट्रपति वेंकय्या नायडू पर कोई आपत्ति है, होनी भी नही चाहिए. यह अधिकार किसी को है ही नहीं.
*लता दिदी, इंदिरा गांधी, सिंधुताई*
पूर्व PM इंदिरा गांधी, कल इस दुनिया को अलविदा कह गई लता दिदी, सिंधुताई सपकाल जैसी सभ्यता की मिसाल कहलाने वाली हस्तियों ने सिर को ढांक कर महिलाओं के जेवर 'शर्म-गैरत' की सीख अपने आचरण से दी. 80 प्रतिशत से अधिक नॉन मुस्लिम लड़कियां अपना सारा चेहरा और सर भी ढंकती है जिससे की शिकार की खोज में निकले दो पैर वाले अनेक भेड़ियों की गंदी नज़रों से बचा जा सके. इससे Skin की tanning से बचा जा सकता है और त्वचा healthy रहती है वो तो मुफ्त में. उनकी इस practice पर भी कोई सवाल उठाने का कोई कारण ही नही बनता.
*नोबल विजेता तवक्कुल करमान का कहना*
Nobel Peace Prize जीतने वाली तवक्कुल करमान कहती है, "Man in early times was almost naked, and as his intellect evolved he started wearing clothes. What I am today and what I’m wearing represents the highest level of thought and civilization that man has achieved, and is not regressive. It’s the removal of clothes again that is a regression back to the ancient times."
शांति के लिए नोबल जीतने वाली इस महिला का कहना है कि मानव शुरुवाती दौर में पूरी तरह नंगा रहता था और जैसे जैसे उसे समाझ आती गई, सभ्य होता गया, उसने अपना तन ढांकना शुरू किया। पहले थोड़े पत्तों से, फिर नीचे का आधा शरीर और फिर पूरा शरीर. कुछ सभ्य लोगो ने सर भी ढांकना शुरू किया. आज मैं जो कपड़े, हिजाब पहनती हूं वह सभ्यता का सब से ऊंचा बिंदु हैऔर यह प्रतिगामी नही है. हा अगर फिर से कपड़े उतारने या कम पहनने शुरू किए जाते है तो वह प्राचीन काल की ओर लौटना होंगा और "प्रतिगामी" कहलाएंगा.
*घर की महिलाओं से पूछो*
जो लोग राजनैतिक लाभ और अपनी नफरत के चलते हिजाब पहनने से रोकना चाहते उन्हें चाहिए कि एक बार अपने घर की लड़कियों और महिलाओं से भी पूंछे कि वह क्या चाहती है? क्या वो बड़ी संख्या में समाज मे फैले भेड़ियों की बुरी नज़र से खुद की सुरक्षा चाहती है या पूनम पांडे, सनी लियोनी जैसी भारतीय महिलाओं को आदर्श मानना चाहती है या फिर पाश्चात्य संस्कृति की तरह भारत को बनाकर खुद उसका हिस्सा बनना चाहती है?
घर के सच्चे पुरुषो से भी पूछ लो कि क्या वह उनके घर की महिलाओं, जिनमे बहेन, पत्नी, बहु- बेटी, भाभी, माँ शामिल है, को दूसरे पुरुष निहारते और घूरते है तब उनके भीतर का मर्द उनसे खुद से क्या कहता है?
*पाश्चात्य नंगेपन से भारत भला*
हो सकता कि पश्चिमी महिलाएं रंग रूप में हमारी महिलाओं से अधिक अच्छी हो पर priority भारतीय महिला को ही है क्योंकि उनका गहना उनकी शर्म ही है और वो ढंकी हुई ज़्यादा अच्छी है. एक सर्वेक्षण में पूछा गया कि दर्जनों एप्स पर, सोशल मीडियाप्लेटफार्म पर पश्चिम देशों की 95 % से ज़्यादा नंगी लड़कियां देखने पर भारतीय पुरुष क्या feel करते है तो पता चला कि केवल कुछ समय के लिए उनका entertainment होता है बस फिर कुछ ही मिनटों में ऊब कर वे दूसरे प्लेटफार्म पर चले जाते है. 90 प्रतिशत वास्तविक मर्दों ने कहा कि वे पश्चिमी संस्कृति और (अ)सभ्यता को खुद के घर मे कतई स्थान नही देना चाहते. फिर ये सभ्य हिजाबवाली महिलाओं पर आपत्ति क्यों? यहां बता दू कि राजस्थान में कही समाज, सिख community, मारवाड़ी समुदाय सहित कही समाजों में सर ढांकना सभ्यता और आदर का तरीका समझा जाता है.
*खुद के घर से शुरू करे*
कही जातिवादी दलों को देखा गया कि उनकी रैली में अनेक नकाबवाली महिलाएं दर्शनी भाग में शामिल होती है और उनके IT सेल के माध्यम से बढ़ा चढा कर इनकी Publicity की जाती. बल्कि कही बार तो फ़र्ज़ी नकाबपोश महिलाएं हाथ में उस पार्टी के झंडे , बैनर्स लहराते दिखाई देती है. ऐसे ढोंगियों से मैं अपील करना चाहूंगा कि "हिजाब बंदी" की मुहिम अपनी पार्टी और परिवार से ही करे. आज ही शपथ ले लो कि आपकी पार्टी और परिवार के किसी भी कार्यक्रम में हिजाब वाली महिलाओं को कोई स्थान नही देंगे और घर की किसी भी महिला को चेहरे और बाल ढंकने ओढ़नी, स्टोल या स्कार्फ का उपयोग नही करने देंगे. इन परिवार की महिलाओं के गुस्से से निपटने के बाद दूसरे समाज की बहू बेटियों को हिजाब से रोकने आए.
*कुछ QUOTES*
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*के दिवाकर* नामक वरिष्ठ वकील, जो पहले मुख्य मंत्री से सलाहकार थे कहते है- Muslims in India are governed by the Muslim Personal Law (Shariat) Application Act, 1937. This law deals with marriage, succession, inheritance and charities and dress code. This law clearly protects the right of Muslim women to wear hijab or burqa.
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कर्नाटक उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अभियोक्ता और *राज्य के पूर्व सरकारी वकील बी टी वेंकटेश* कहते है- "People from other religions such as Hinduism are allowed to wear bindis and bangles. So, not allowing hijab selectively targets Muslims. Hijab should be seen just as a headgear. Even some Christians wear it in a few countries. There shouldn’t be a problem wearing hijab as long as students are wearing uniform along with it."
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*अखिलेश पांडे* नामक सुधारवादी अध्ययनकर्ता ने कहा -" सिख समाज के लोगो को पगड़ी और कृपण रखने की अनुमति है, हिन्दू महिलाएं बिंदिया और मंगलसुत्र का उपयोग कर सकती है तो मुस्लिम महिलाओं और बच्चियों को हिजाब से क्यों रोका जाए?"
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*एडवोकेट एन वेंकटेश* नामके विख्यात अभियोक्ता का कहना है- "Several courts have held the right to wear hijab. In 2016, when AIIMS prohibited hijab-wearing aspirants from appearing for the entrance exam, Kerala high court ruled that students might take the exam while wearing hijab as it was an essential practice of the aspirants’ religious faith".
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*राहुल गांधी* ने ट्वीट किया -"By letting students’ hijab come in the way of their education, we are robbing the future of the daughters of India. Ma Saraswati gives knowledge to all. She doesn’t differentiate.”
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